Monday, 28 July 2014

Saturday Bhandara- Dr. Rajan Chopra

















Man of principles and morale values : Dr. Rajan Chopra, A very down to earth and helpful human being here distributing free meals to the people. For more information about DR. Rajan Chopra Visit Online- www.rajanchopra.in

Thursday, 17 July 2014

Join hands with Rajasthan Govt. In the presence of Honb'le Chief Minister Smt. Vasundhara Raje

Join hands with Rajasthan Govt. In the presence of Honb'le Chief Minister Smt. Vasundhara Raje for skilling project with ICT enable tablet classrooms/Virtual Labs n Live Distance learning to make Shiksith Rajasthan Vikshit Rajasthan !


DR. Rajan Chopra

DR. Rajan Chopra

DR. Rajan Chopra

DR. Rajan Chopra

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Saturday, 12 July 2014

Never Ending Success Graph of Dr. Rajan Chopra

In the field of education, the contribution of Dr. Rajan Chopra is commendable which cannot be described in words. His thought to provide education among deprived students on a global scale has brought a major change in the society. Promoting skill development courses to skill the unskilled and making them financial independent is one of his key achievements other than the Management, IT, professional and traditional courses for under-graduate and post-graduate programs.

And now Dr.Rajan Chopra has been appreciated by the Representative Ed Royce(Member of Congress-39th District) who honored Dr. Rajan Chopra by “Certification of Congressional Recognition” for his contribution to global higher education.
Dr. Rajan chopra

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Thursday, 10 July 2014

Social Service- Dr. Rajan Chopra



Dr. Rajan Chopra distributing fruits to the needy and poor girls. Thus serving mankind. The picture itself describes so many emotions. DR. Rajan Chopra is a man of principle who helps the society. 

"“When you do "it" right, Social Work is a feeling that is larger than you own life.
Ogden W. Rogers,

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In the picture above, Dr Rajan Chopra distributing food to the poor and needy. He is a man of values and believes in helping the people who are in need.


 
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Saturday, 5 July 2014

Every Saturday Bhandara By Dr. Rajan Chopra


"It is not how much we give but what matters is the love we put in giving" with this thought Dr. Rajan Chopra a man of simplicity believes in lifting people up by spreading education among all. Some of the clippings of his generous work."

 

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Thursday, 3 July 2014

शिक्षा और मोदी सरकार की चुनौतियां : डॉ राजन चोपड़ा

मोदी सरकार का एक महीना पूरा होने जा रहा हैं. राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसद में दिए भाषणों से नई सरकार की प्राथमिकता भी साफ हो गई है. अगर शिक्षा की बात की जाएं तो नई सरकार काफी कुछ करना चाहती है लेकिन शिक्षा और खासतौर से उच्च शिक्षा के हालत से सरकार की चिंताएं साफ है. 

सरकार की योनजाओं का खुलासा करते हुए राष्ट्पति मुखर्जी ने संसद के संयुक्त अधिवेशन में कहा कि उनकी सरकार मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्सेस और वर्च्युअल कक्षाएं तैयार करेंगी साथ ही शिक्षण संस्थाओं में गुणवता, अनुसंधान और नई प्रक्रिया में उत्पन्न कठिनाइयों को दूर करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाने की बात कही. इसके अलावा सरकार की प्राथमिकता सभी राज्यों में आईआईटी और आईआईएम स्थापित करने की है. 
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नरेंद्र मोदी ने संसद में दिए भाषण में साफ किया कि आज स्कैम इंडिया नहीं बल्कि स्किल इंडिया की जरुरत है. प्रधानमंत्री ने आधुनिक विज्ञान और टेक्नॉलॉजी के माध्यम से गांव में बैठे हर एक छात्र को उतम शिक्षा देने की बात कहीं. प्रधानमंत्री ने कहा कि हम अच्छी ट्रेनिंग व्यवस्था के माध्यम से विश्व को शिक्षक निर्यात कर सकते हैं. 

लेकिन सवाल ये है कि क्या सरकार के पास इतने संसाधन है ? आखिर सरकार जनता से किए वायदे को कैसे पूरा करेगी. अभी सरकार देश के बजट का साढ़े तीन फीसदी ही शिक्षा पर खर्च कर पाती है जबकि शिक्षा बजट को 8 फीसदी करने की मांग की जा रही है. 

संसाधन की कमी 

2020 तक यूनिवर्सिटी एजुकेशन के दरवाजे पर 5 करोड़ के करीब छात्र दाखिले के लिए खड़े होंगे और उन्हें उत्तम शिक्षा देने की जिम्मेदारी सरकार की होगी. अभी भारत में 600 यूनिवर्सिटी और 33,000 के करीब कॉलेज हैं और शिक्षण संस्थानों में बढ़ोतरी इसका केवल मात्र हल संभव नहीं है.

शिक्षा बजट में बढ़ोतरी से भी उच्च शिक्षा की समस्याओं का समाधान संभव नहीं है क्योंकि मोदी सरकार पर स्कूली शिक्षा का स्तर और सुविधाएं बढ़ाने का काफी दबाव होगा. लिहाजा उच्च शिक्षा को आगे बढ़ाने का एक मात्र उपाय डिस्टेंस और ऑनलाइन एजुकेशन को बढ़ावा देना है. राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों इस मुद्दे पर अपनी मंशा जाहिर कर चुके हैं. 

देश में उच्च शिक्षा में नामांकन दर की स्थिति भी काफी दयनीय है. भारत में 12 फीसदी, अमरीका में 82 फीसदी, ब्राजील में 24 फीसदी ,चीन में 20 फीसदी और पाकिस्तान में 5 फीसदी है. 

विदेशी शिक्षा पर भारी खर्च 

भारतीय छात्र विदेश जाकर पेशेवर डिग्री लेना ज्यादा पंसद कर रहे हैं. एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक 2012-13 में भारतीय छात्रों ने विदेशी शिक्षा हासिल करने के लिए 10,000 करोड़ रुपए खर्च किए. ऐसा तब है जब भारत में कई विदेशी शिक्षण संस्थान साझेदारी में शिक्षा दे कर रहे हैं. महत्वपूर्ण बात ये है कि यह रकम हमारी उच्च शिक्षा बजट का बहुत बड़ा हिस्सा है. 

भारत में मेडिकल (एमबीबीएस) की केवल 50 हजार सीटें हैं जबकि मांग 5 से 6 लाख के बीच है. इसी तरह नर्स की मांग 20 लाख के आस पास है लेकिन ट्रेनिंग की व्यवस्था नहीं है लिहाजा छात्र विदेश जाने को मजूबर हैं. 

दूरस्थ शिक्षा की खराब हालत 

सबसे पहले 1962 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से दूरस्थ शिक्षा की शुरूआत हुई जिसमें 1162 छात्रों ने दाखिला लिया. आज 250 से ज्यादा यूनिवर्सिटी और शिक्षण संस्थान, दूरस्थ शिक्षा के जरिए 40 लाख से ज्यादा छात्रों को शिक्षा दे रहे हैं. दूरस्थ शिक्षा के जरिए शिक्षा हासिल करने वाले छात्रों की संख्या 22 फीसदी पहुंच गई है. 1982 में हैदराबाद में पहली बी आर अम्बेडकर ओपन यूनिवर्सिटी की शुरुआत हुई और 1985 में इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी बनी. 

आज दूरस्थ शिक्षा में भले ही छात्रों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है लेकिन नियमों में कई बार बदलाव और अधिकारियों की लालफीताशाही से आज यह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पा रहा है. दूरस्थ शिक्षा को रेगुलेट करने के लिए इग्नू के तहत 1991 में दूरस्थ शिक्षा परिषद की स्थापना की गयी. 2010 में बनाई गई माधव मेनन कमेटी ने दूरस्थ शिक्षा परिषद के अधिकार पर सवाल उठाए और परिषद को भंग करने की सिफारिश की. मई 2013 में दूरस्थ शिक्षा परिषद को भंग करा दिया गया और यूजीसी में अलग से “ डिस्टेंस एजुकेशन ब्यूरो ” बना दिया गया. 

दूरस्थ शिक्षा परिषद यानि डीईसी के अधिकार और कार्यप्रणाली पर माधव मेनन कमेटी ने कई गंभीर सवाल उठाए. रिपोर्ट में परिषद की कार्यप्रणाली से डिस्टेंस एजुकेशन को नुकसान होने की बात कही गई. परिषद और मंत्रालय के अधिकारियों की मर्जी से कई बार नियम बनाए गए और बदले गए. 
http://www.vidyaexpress.com/news.php?id=324&action=d

अलग बॉडी बनाने की मांग 

अब केंद्र में नई सरकार सत्ता में आने से एक बाद फिर बदलाव की बात शुरू हो गई है. डिस्टेंस एजुकेशन ब्यूरो को यूजीसी से अलग करने की लिए एक कमेटी गठित कर दी गई है जिसमें दो ओपन यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और दूरस्थ शिक्षा परिषद के पूर्व डायरेक्टर को सदस्य बनाया गया है. कमेटी को तीन महीने में रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है. 

अब सवाल उठता है कि क्या फिर नियम में बदलाव होंगे. क्या डिस्टेंस एजुकेशन ब्यूरो को यूजीसी से अलग कर एआईसीटीई की तर्ज पर अधिकार दिए जाएंगे ?. अगर एआईसीटीई की तरह अलग बॉडी बनाई जाती है तो यह किसी यूनिवर्सिटी की स्वायत्ता में कैसे दखलअंदाजी करेगी. उच्चतम न्यायालय अपने आदेश में साफ कह चुका है कि किसी भी यूनिवर्सिटी को बीटेक और दूसरी तकनीक कोर्स चलाने के लिए एआईसीटीई से मान्यता की जरूरत नहीं है. तो डिस्टेंस एजुकेशन के लिए नई बॉडी के पास क्या अधिकार होंगे ? इस पर कई सारे सवाल उठते हैं लेकिन नई सरकार से छात्रों, अभिभावकों और दूसरे सभी शेयर होल्डर्स को काफी उम्मीदें हैं कि सरकार इसे पूरा करने में सफल होगी.

डॉ राजन चोपड़ा 
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